Success Story: आर्किटेक्ट की पढ़ाई करने के बावजूद सफल बिजनेसमैन बने रतन टाटा, जानिए उनकी सफलता की कहानी

नई दिल्ली. बचपन में हर कोई सपना देखता है कि वह बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, वैज्ञानिक बनेगा या फिर वह कुछ ऐसा करने की सोचता है जिससे उसकी अलग पहचान बने. लेकिन अक्सर जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आती हैं जो उनके सपनों को चूर-चूर कर देती हैं. ऐसे में उन्हें समय के अनुरूप ही नौकरी करनी पड़ती है. इसके बावजूद भी वे उस सेक्टर में ऐसा कर जाते हैं कि उनके काम की तारीफ होती है और दुनिया उन्हें सम्मान की नजरों से देखती है. ऐसे ही लोगों में शामिल हैं भारत के सफल उद्यमी रतन टाटा.
कभी आर्किटेक्ट बनना चाहते थे रतन टाटा
वर्तमान में रतन टाटा (Ratan TATA), टाटा समूह (TATA Group) के अंतरिम चेयरमैन के पद पर हैं. रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर को 1937 में मुंबई में हुआ था. रतन टाटा का बचपन का सपना एक आर्किटेक्ट (Architect) बनने का था. लेकिन उनके पिता नवल टाटा चाहते थें कि वे इंजीनियर बने. पिता की इच्छा के अनुरूप उन्होंने ऐसा किया भी. ये बातें उन्होंने खुद बीते दिनों फ्यूचर ऑफ डिजाइन एंड कंस्ट्रक्शन पर आयोजित एक ऑनलाइन संगोष्ठी में कही.
रतन टाटा का आर्किटेक्चर से इसलिए था जुड़ाव
कार्यक्रम के दौरान रतन टाटा ने कहा कि वर्ष 1959 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से डिग्री करने के बाद वे आर्किटेक्टर के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते थे. उनका मानना है कि आर्किटेक्चर के जरिए मानवता को समझने की गहरी भावना पैदा होती है. यही कारण है कि वास्तुकला ने उन्हें प्रेरित किया क्योंकि इसके प्रति उनमें गहरी रुचि थी.
उन्होंने कहा कि मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक इंजीनियर बनूं. इसलिए मैंने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए इंजीनियरिंग का कोर्स किया और इंटर्नशिप के लिए टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट आ गया. लेकिन मुझे पछतावा नहीं है कि मैं आर्किटेक्ट नहीं बन पाया. बस अफसोस इस बात का है कि डिग्री करने के बाद भी मैं अपने काम के साथ-साथ अपने ड्रीम जॉब के लिए अभ्यास नहीं कर पाया.
विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए युवाओं को दी सलाह
युवाओं को प्रेरित करते हुए रतन टाटा ने कहा कि जीवन में कई ऐसे मोड़ आएंगे जो आपकी इच्छा के अनुसार नहीं होंगे. लेकिन इससे परेशान होने के बजाए परिस्थितियों का सामना करें. जब समय अनुकूल हो तब वह जरूर करें जो आपको अच्छा लगता है. आज मुझे लगता है कि मेरे पिता ने मेरे लिए जो निर्णय लिया, वह सही था.
1961 में टाटा समूह में हुए थे शामिल
रतन टाटा वर्ष 1961 में टाटा समूह में शामिल हुए और 1991 में समूह के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला. उन्होंने दिसंबर 2012 तक समूह का नेतृत्व किया. वर्तमान में वे टाटा समूह के अंतरिम चेयरमैन के पद पर हैं. अपने करियर की शुरुआत में रतन टाटा, टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर लाइमस्टोन को हटाने और धमाके भट्टी को हैंडल करने का काम करते थे.
टाटा ने नाल्को में हाई टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत करने के लिए पैसा लगाने का सुझाव जेआरडी टाटा को दिया. क्योंकि अब तक इस कंपनी में सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स ही बनाए जाते थे और कंपनी काफी घाटे में चल रही थी. उनके इस सलाह से जेआरडी टाटा बहुत खुश नहीं थे, परंतु उन्हें इस पर अमल किया और आगे चलकर कंपनी काफी फायदे में चलने लगी.
1991 में करना पड़ा विरोध का सामना
1991 में जेआरडी टाटा ने टाटा संस का चैयरमैन पद छोड़ दिया और रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. जब रतन टाटा ने अपना पद संभाला तो कंपनी में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. कई कंपनियों के प्रमुख, जिन्होंने कई दशक टाटा ग्रुप से जुड़कर खर्च किए थे, काफी ताकतवर और प्रभावी हो गए थे.
इन्हें हटाने के लिए रतन टाटा ने एक उम्र निर्धारित कर (रिटायरमेंट एज) पद से हटाने की मुहिम शुरू की. इसके अलावा कई कंपनियों को ग्रुप के साथ जोडा, जिन्हें टाटा ग्रुप के ब्रांड का इस्तेमाल कर लाभ को टाटा ग्रुप के साथ शेयर करना था. टाटा ने नवीनता को प्रमुखता दी और युवा टैलेंट को अपने साथ जोड़ा और उन्हें जिम्मेदारियां दीं. जिसकी वजह से कंपनी मुनाफा और बढ़ गया.
रतन टाटा की उपलब्धियां
अपने 21 साल के कार्यकाल में रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की आमदनी को 40 गुना अधिक कर दिया और टाटा ग्रुप के लाभ को 50 गुना पहुंचा दिया. इसके अलावा रतन टाटा की कमान लेते ही टाटा ग्रुप ने टाटा टी ब्रांड के तले टीटले, टाटा मोटर्स के तले जगुआर लैंड रोवर और टाटा स्टील के तले कोरस खरीदे.
जिसके बाद टाटा ग्रुप भारत के बड़े ब्रांड से ग्लोबल बिज़नेस में दाखिल हुआ. इस ग्रुप का 65 प्रतिशत रैवेन्यू करीब 100 देशों में फैले बिजनेस से आने लगा. टाटा की नैनो कार, रतन टाटा की सोच का नतीजा है. रतन टाटा ने कहा भी है कि नैनो का कांसेप्ट क्रांतिकारी रहा. इससे कम कमाई करने वाले लोग भी कार की सवारी कर पा रहे हैं.