Russia-Ukraine Conflict: तीन दशक बाद एक बार फिर विश्व राजनीति की भेंट चढ़ा यूक्रेन

विनीत अनुराग। विगत 24 अगस्त को यूक्रेन ने अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया है। इसी दिन वह सोवियत संघ से अलग होकर एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर आया था। तब शायद यूक्रेन ने यह नहीं सोचा होगा कि लगभग तीन दशक बाद उसे एक बार फिर अपनी स्वतंत्रता और आत्म निर्धारण के अधिकार के लिए रूस के साथ लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
यूक्रेन का लगातार नाटो का सदस्य बनने की इच्छा जाहिर करना
पिछले छह माह से जारी युद्ध के इतनी लंबी अवधि तक होने की पूर्व में कोई आशंका नहीं जताई गई थी। दरअसल यह युद्ध अप्रत्याशित रूप से इतना लंबा खिंच गया इसके पीछे क्या कारण हैं, इस पर कई विश्लेषक अपने दृष्टिकोण रख रहे हैं। इसमें एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आ रही है वह यह कि यूक्रेन का लगातार नाटो का सदस्य बनने की इच्छा जाहिर करना, यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के प्रयास, अमेरिका और यूरोपीय देशों से सहायता लेने की मंशा और और रूस का सैन्य प्रतिकार करने की मंशा दिखाना वे प्रमुख कारक हैं जिन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को इस युद्ध को आगे ले जाने के लिए खुराक प्रदान किया।
अमेरिका रूस को भुगतने की धमकी देता रहा
अगर यूक्रेन समय रहते नाटो से जुड़ने की मंशा को त्याग देता और इस बात का प्रदर्शन नहीं करता कि वह अमेरिका सहित पश्चिम के सहयोग से स्वयं को पूरी तरह सुरक्षित महसूस करता है तो शायद रूस इतना आक्रामक नहीं होता। वहीं दूसरी ओर, अमेरिका और नाटो सहित अन्य यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को जो आश्वासन दिए थे, उस पर वे प्रतिबद्ध नहीं रह सके। पूरे युद्ध में सबसे बड़ा सवाल अमेरिका पर खड़ा किया गया। युद्ध से पहले अमेरिका रूस को यूक्रेन पर हमले को लेकर गंभीर दुष्परिणाम भुगतने की धमकी देता रहा, लेकिन जब युद्ध हुआ तो उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। दरसअल अमेरिका का मानना है कि रूस और उसकी सेना एक-दूसरे के साथ भिड़ेंगे तो विश्वयुद्ध हो जाएगा, जिसका दुष्परिणाम पूरे विश्व को भुगतना पड़ सकता है।
अमेरिका के यूक्रेन में सेना नहीं भेजने के पीछे कूटनीतिक कारण भी है। यूक्रेन अमेरिका का पड़ोसी देश नहीं है। सेना भेजने से उसका भविष्य में रूस के साथ तेल व्यापार भी प्रभावित हो सकता है। वहीं अमेरिका अभी कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। यदि वह सेना भेजता है तो रूस उस पर भी हमला कर सकता है, जिससे हालात और खराब हो जाएंगे।
रूस हर प्रकार की आक्रामकता के साथ खड़ा
अब सवाल उठता है कि यह युद्ध विश्व को किस मोड़ पर लेकर जा रहा है और क्या युद्ध विराम समझौते के साथ वास्तव में इस पर विराम लगेगा। दरअसल रूस को पता है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था को देखते हुए बार बार युद्ध नहीं किया जा सकता, इसलिए जब एक बार युद्ध छिड़ ही चुका है तो इसे अधिक से अधिक परिणाम प्राप्त करने वाला बना लिया जाना चाहिए। यूक्रेन के सामरिक, आर्थिक, नाभिकीय महत्व वाले क्षेत्रों, औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों पर एक स्थायी नियंत्रण का मौका रूस छोड़ना नहीं चाहता है। इसलिए रूस हर प्रकार की आक्रामकता के साथ खड़ा नजर आता है।
रूस को अंतरराष्ट्रीय नियमों, कानूनों और संयुक्त राष्ट्र के मैंडेट्स से भी कोई खास भय नहीं है। उसका मानना है कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए कई बार उपयोग किया है। इसलिए रूस संयुक्त राष्ट्र के अनुनय विनय को भी दरकिनार करता नजर आया है। इसके साथ ही यह भी एक बड़ा सच है कि चाहे अमेरिका हो या यूरोपीय देश, वे यह मानते हैं कि रूस के साथ अनन्य रूप से दुश्मनी का व्यवहार करने से विश्व को बड़े आर्थिक और व्यापारिक संकट भुगतने पड़ सकते हैं। इसलिए इस युद्ध में हर देश पूरी तरह से सकर्त रहते हुए अपनी भूमिका निभाना चाहता है।