Ramlila 2022 : कोरोना के दो साल बाद रावण करेगा अट्टहास तो राम की प्रत्यंचा मचाएगी लंका में हाहाकार

इस बार कोरोना की वजह से दो साल तक आयोजन बंद रहने के बाद दोबारा अब रामलीला का मंच सजने को आतुर है। नौ सितंबर को अनंत चतुर्दशी के मौके पर यूनेस्कों में शामिल विश्व की सबसे बड़ी मुक्ताकाशीय रामलीला की रामनगर में शुरुआत हो जाएगी। हर- हर महादेव और जय श्री राम का उद्घोष रामनगर में कोरोना के दो साल बाद गूंजेंगे। काशी नरेश की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद पात्रों का चयन और संवाद को पात्र कंठस्थ करने में लगे हुए हैं। इस रामलीला की खासियत यह है कि बिना बिजली और बिना माइक के पिन ड्राप साइलेंस का नजारा सदियों से इस परंपरा को पुरातन स्वरूप में जीवित रखे हुए है।
कोरोना की वजह से प्रभावित होने के बाद एक बार फिर रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला रामनगर में आयोजित होने जा रही है। आयोजन समिति की ओर से दुर्ग प्रशासन ने आयोजन को हरी झंडी दे दी है। राज परिवार से जुड़े अनंत नारायण सिंह की ओर से पात्रों के चयन का निर्देश देने के बाद अधिकृत रूप से दुर्ग प्रशासन के निर्देश मिलते ही पात्रों के चयन को लेकर रामलीला व्यास को निर्देशित कर दिया गया था।
जून से शुरू हुई तैयारियां अब पूरी हो चुकी हैं। अब नौ सितंबर को अनंत चतुर्दशी से रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का शुभारंभ होने जा रहा है। इस पूरे एक माह तक यहां प्रभु राम की लीला के दर्शन भक्तों को होंगे। वहीं कोरोना संक्रमण काल के कारण दो वर्ष से रामलीला महज प्रतीक पूजन के साथ ही संपन्न कर दी जा रही थी। इस बार वाराणसी में कोरोना का संक्रमण नहीं होने की वजह से कार्यक्रम के आयोजन को हरी झंडी मिल चुकी है। मुख्य स्वरूपों के चयन के लिए पहली स्वर परीक्षा रथयात्रा मेला के दूसरे दिन होने की परंपरा रही है। इस बार रथयात्रा मेला एक जुलाई को होने के बाद दो जुलाई को पहली स्वर परीक्षा आयोजित की गई थी।
पात्रों का चयन होने के बाद श्रावण मास की चतुर्थी को ही प्रथम गणेश पूजन के साथ मुख्य स्वरूपों का प्रशिक्षण शुरू हो गया। इसीलिए स्वरूप चयन की प्रक्रिया उससे पहले पूरी ही पूरी कर ली गई थी। आयोजन के ढाई सौ साल में बहुत कुछ बदला, लेकिन रामनगर की रामलीला की परंपराएं जस की तस हैं। बदलाव की आधुनिक बयार से बिना प्रभावित हुए पंचलाइट और महताब की रोशनी में रामनगर की रामलीला का मंचन अनवरत हो रहा है। यह मात्र नाटक न होकर परंपराओं की रामलीला कहलाती है जहां आम जन पिनड्राप साइलेंस की तरह नजर आते है। मुद्दत बाद रामनगर की अनोखी रामलीला में वही परंपराएं आज भी जीवंत हैं।