Punjab Heritage: बारह गेटों में बसता था पुराना अमृतसर शहर, महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था निर्माण

हरीश शर्मा, अमृतसर। गुरुनगरी अमृतसर शहर का इतिहास काफी पुराना है। यहां पर महाराजा रणजीत सिंह, अंग्रेजों के शासन से जुड़ी कई चीजें आज भी लोगों को उस दौर की याद दिलाती हैं। उन चीजों को या तो म्यूजियम में संजोकर रखा गया है या फिर उन्हें धरोहर घोषित करते हुए उनका रखरखाव किया जा रहा है। इनमें महाराजा रणजीत सिंह की ओर से बनवाए गए 12 गेट भी शामिल हैं जहां पर उस समय पुराना शहर बसता था।
देश की आजादी के पहले महाराजा रणजीत सिंह की ओर से बनवाए गए बारह गेटों के अंदर पुराना शहर बसता था। हालांकि इन गेटों के बाहर भी कुछ गांव थे, मगर शहर के इन्हीं 12 गेटों के अंदर घनी आबादी होती थी। हर तरह के बाजार भी इन्हीं गेटों के अंदर वाले शहर में ही सजते थे। यूं भी कह सकते हैं कि ये 12 गेट अपने अंदर पूरा इतिहास संजोए हुए हैं।
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ इन गेटों को खोल दिया जाता था। जैसे ही शाम होती तो सभी गेट बंद कर दिए जाते थे, क्योंकि रात को जब लोग सो रहे होते थे, उस समय मुगल हमला कर देते थे। ऐसे में मुगलों के हमले से लोगों की सुरक्षा करने के लिए इन गेटों को बंद कर दिया जाता था।
सभी गेटों के साथ बहती थी गहरी नहर
बहुत ही कम लोग जानते हैं कि अमृतसर के सभी 12 गेटों के ईर्द-गिर्द एक नहर होती थी। इसमें हर समय पानी भरा रहता था और यह करीब 17 फीट गहरी और चार फीट चौड़ी थी। इस नहर को भी महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया गया था। यह नहर भी सुरक्षा प्रबंधों का हिस्सा था ताकि अगर कोई रात के समय हमला करता भी है तो यही नहर सबसे पहले रास्ता रोकती थी। गहराई का अंदाजा न होने पर सैनिक इसमें गिर कर बह भी जाते थे। हालांकि रात को गेटों के ऊपर तोपों के साथ सैनिकों का सख्त पहरा भी रहता था।
यह हैं गेटों के नाम
महां सिंह गेट, लहौरी गेट, गेट हकीमां, बेरी गेट, लौहगढ़ गेट, हाथी गेट, हाल गेट, चाटीविंड गेट, सुल्तानविंड गेट, शेरां वाला गेट, खजाना गेट, सिकंदरी गेट।
अमृतसर स्थित हकीमां वाला गेट।
अंग्रेजों गेट और दीवार भी तुड़वा दी, नए सिरे से बनवाए
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जब पूरी तरह अंग्रेजों का राज आ गया तो उन्होंने सभी गेट तुड़वाने शुरू कर दिए। गेटों के साथ-साथ बनी दीवार को भी तोड़ दिया था। 1892 तक सभी गेट तुड़वा दिए गए और अंग्रेजों ने इन्हें अपने मुताबिक बनवाया।
अंग्रेजों के बनाए हुए गेट ही आज भी मौजूद हैं जबकि महाराजा रणजीत सिंह के समय की केवल रामबाग गेट की डयोढ़ी मौजूद है। हालांकि इन गेटों पर जो बड़े-बड़े लकड़ी के दरवाजे लगे होते थे, वह आज भी लौहर स्थित म्यूजियम में मौजूद हैं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।