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History Of Gyanvapi Masjid : आजादी से पहले व्यासपीठ से उठा ज्ञानवापी का मुद्दा, पुराणों में प्रमुखता से उल्लेख

जागरण संवाददाता, वाराणसी : Gyanvapi Masjid History इन दिनों देश-दुनिया में चर्चा का केंद्र बिंदु बना काशी ज्ञानवापी मामला परतंत्र भारत में व्यासपीठ से उठा था। उस समय यह मालिकाना हक का मामला हुआ करता था। इसमें व्यास परिवार को सफलता भी मिली, लेकिन स्‍वतंत्रता मिलने के बाद 15 अक्टूबर 1991 में पं. सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण और पूजा-पाठ को लेकर याचिका दाखिल की। सात मार्च 2000 को उनके निधन के बाद इसे वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने आगे बढ़ाया। उनके प्रार्थना पत्र पर बीते वर्ष आठ अप्रैल को सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। हालांकि आदेश के क्रियान्वयन पर अभी हाईकोर्ट की ओर से रोक है।

परतंत्र भारत में मालिकाना हक को लेकर हुई थी लिखा पढ़ी

इतिहास पर गौर करें तो वर्ष 1669 में औरंगजेब ने ज्ञानवापी परिसर स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया। देश स्वतंत्र होने के बाद पुराने मंदिर के संबंध में लिखा-पढ़ी शुरू हुई। वास्तव में ज्ञानवापी परिसर व्यास परिवार का हुआ करता था। कानूनी दस्तावेजों के अनुसार परिसर और मस्जिद के एक तहखाने का स्वामित्व पं. बैजनाथ व्यास के नाम था। अंत समय में उन्होंने अपने नाती पं. केदारनाथ व्यास, पं. सोमनाथ व्यास समेत तीन नातियों को वसीयत कर दी। इसमें एक तहखाने के साथ ही ज्ञानवापी हाता व आवास था।

मंदिर सुंदरीकरण में अधिग्रहीत किया गया था व्यास आवास

मंदिर विस्तारीकरण व सुंदरीकरण परियोजना शुरू हुई तो मंदिर प्रशासन की ओर से व्यास आवास खरीदने की जरूरत महसूस हुई। पं. सोमनाथ व्यास व एक अन्य भाई के उत्तराधिकारी ने इसे बेच दिया, लेकिन आवास का अस्तित्व रहने तक पं. केदारनाथ व्यास इसमें रहे। भवन का कुछ हिस्सा गिरने पर प्रशासन ने नगर निगम, वीडीए व लोनिवि से इसकी स्थिति का आकलन कराया। इसमें जर्जर पाए जाने पर भवन 2017 में ध्वस्त करा दिया। उसके बाद पं. केदारनाथ व्यास मंदिर के समीप स्थित एक किराये के भवन में रहे जहां साल भर के भीतर उनकी मौत हो गई। भवन को लेकर मामला हाईकोर्ट तक गया।

धरोहर से कम नहीं रहा भवन

व्यासपीठ की महत्ता का उल्लेख शास्त्रों में भी वर्णित है। यहां ही पंचक्रोशी समेत काशी की परंपरा से जुड़ी अन्य परिक्रमा के लिए संकल्प लिए जाते रहे हैं। ज्ञानवापी हाता स्थित व्यास परिवार का आवास भी कोई सामान्य भवन न था। इससे आद्य शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मंडन मिश्र की यादें जुड़ी थीं। इसमें उनकी मूर्ति स्थापित थी राधाकृष्ण मंदिर भी था। इसमें महात्मा गांधी के साथ ही मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी समेत देश की कई विभूतियां आ चुकी थीं। काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी व्यासपीठ, ज्ञानकूप और ज्ञानवापी हाता के प्रबंधक रहे पं. केदारनाथ व्यास ने पंचकोशात्मक ज्योतिर्लिंग काशी महात्म्य और अन्नपूर्णा कथा जैसी पुस्तकें लिखीं। उनकी पुस्तक काशी खंडोक्त पंचकोशात्मक यात्रा का 16 भाषाओं में अनुवाद हुआ। कहा जाता है कि उनकी कई पांडुलिपियां और अनेक ग्रंथ भवन ध्वस्त होने पर उसमें ही समा गए।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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