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Gyanvapi of Varanasi : अज्ञान का धुंध हटाता ज्ञान का कूप, स्कंद पुराण में ज्ञानवापी को बताया गया काशी का मूल केंद्र

वाराणसी, नीरजा माधव। ज्ञानवापी सदियों से काशी विश्वनाथ दरबार का अभिन्न अंग रहा है। 2021 में भव्य-नव्य श्रीकाशी विश्वनाथ धाम बनने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद की ओर सबका ध्यान गया, जिसके परिसर में शृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं के विग्रह कैद में पड़े थे। विश्वनाथ दरबार का अर्थ ही है, बाबा विश्वनाथ के मुख्य विग्रह के आसपास अन्य देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिरों और उनमें उनके विग्रह का अस्तित्ववान होना। यह जग विदित है कि विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस अतीत में किसी आक्रांता शासक द्वारा कराया गया था। यह भी सत्य है कि ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित शृंगार गौरी के दर्शन पूजन का अधिकार माननीय न्यायालय द्वारा व्यास जी को दिया गया था।

प्रतिवर्ष एक तिथि विशेष पर शृंगार गौरी को जलाभिषेक करने का आग्रह लिए कुछ शिवसैनिकों की गिरफ्तारी और फिर रिहा होने की खबरें भी आती रहती थीं। ज्ञानवापी के बगल में स्थित विशाल नंदी का मुख ज्ञानवापी मस्जिद की ओर (उत्तर दिशा में) है। नंदी शिव की उपस्थिति के प्रतीक हैैं। जहां नंदी होते हैैं, वहां शिवलिंग या शिव विग्रह अवश्य होता है। ज्ञानवापी और नंदी का मस्जिद के पास होना, साथ ही शृंगार गौरी का मस्जिद परिसर के भीतर होना बहुत पहले से ही हिंदुओं के भीतर उद्वेलन तो पैदा कर ही रहा था। 21वीं सदी के 21वें वर्ष में कुछ महिलाओं ने शृंगार गौरी के नियमित पूजन-अर्चन के लिए न्यायालय से अनुमति मांगी तो सच्चाई जानने के लिए न्यायालय ने मई 2022 में मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश पारित कर दिया। सर्वेक्षण में क्या आया, क्या मिला, यह मेरे इस लेख का प्रतिपाद्य नहीं है। मैं बस ज्ञानवापी पर कुछ चर्चा करना चाहती हूं।

नंदी का मुंह मस्जिद की ओर होने का मतलब वहां शिवलिंग था 

हमारे पास इतिहास का सबसे बड़ा प्रमाण हमारे पौराणिक ग्रंथ और प्राचीन साहित्य हैं। स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णन है कि ज्ञानवापी काशी का मूल केंद्र है। इस पुराण के काशी खंड के 34वें अध्याय में 36, 37, 38 एवं 39वां श्लोक ज्ञानवापी के माहात्म्य पर है। 36वें श्लोक में स्पष्ट लिखा है कि विश्वेश्वर के दक्षिण में ज्ञानवापी स्थित है। वर्तमान स्थिति में यह काशी विश्वनाथ के उत्तर दिशा में हो गया है। स्पष्ट है कि मूल विश्वनाथ मंदिर के ध्वंस के बाद जब विश्वनाथ जी की पुन: स्थापना हुई और मंदिर निर्माण हुआ तो ज्ञानवापी और नंदी उत्तर भाग में हो गए। नंदी का मुंह मस्जिद की ओर होने का तात्पर्य ही है कि शिवलिंग वहां था और इस प्रकार ज्ञानवापी की भी स्थिति उस समय वहां स्थित विश्वेश्वर के दक्षिण दिशा में थी, जैसा कि स्कंद पुराण में वर्णित है- ज्ञानवापीं ददर्शाथ श्री विश्वेश्वर दक्षिणे (स्कंद पुराण, काशी खंड, अध्याय 34, श्लोक 36)।

जहां-जहां काशी, वहां-वहां विश्वनाथ और ज्ञानवापी

पुराणों में महादेव शिव को अष्टमूर्ति कहा गया है। यह ज्ञान प्रदा ज्ञानवापी उन्हीं की जलमयी मूर्ति हैं। इसी अध्याय के 70वें श्लोक में कहा गया है-इति ज्ञानं ममोद्भूतं ज्ञानवापीक्षणात्क्षणात्। अर्थात ज्ञानवापी के दर्शन मात्र से क्षण भर में मुझ में ऐसा ज्ञान संचार हो गया। ज्ञानवापी का अर्थ ही है ज्ञान का कूप। वापी और ज्ञान संस्कृत निष्ठ शब्द हैं। पुराणों में ज्ञानवापी को प्रत्यक्ष ज्ञानदात्री कह कर सर्व तीर्थोत्तम कहा गया है। इसे सर्वज्ञानात्मिका, सर्वलिंगात्मिका तथा साक्षात शिव मूर्ति कहा गया है । कहने का तात्पर्य यह कि जिन-जिन पुराणों और प्राचीन वांग्मय में काशी का वर्णन है, उनमें विश्वनाथ, ज्ञानवापी आदि का उल्लेख अवश्य है।

सनातन धर्मियों के एक विशेष परंतु प्रमुख तीर्थ की तरह है काशी विश्वनाथ धाम में स्थित ज्ञानवापी। कहा जाता है आदिकाल से इसका अस्तित्व है और इसी को केंद्र में रखकर काशी में कोई भी धार्मिक, भौगोलिक, खगोलीय माप की जाती है। यहां तक कि वैज्ञानिक भी इसकी केंद्रीयता को स्वीकार करते हुए अपना शोध करते हैं। इसी ज्ञानवापी केंद्र के आसपास का एक योजन का वृत्ताकार स्थान काशी का अविमुक्त क्षेत्र कहलाता है। काशी को ज्ञान की नगरी इसीलिए कहा जाता है कि इसके केंद्र में ही ज्ञान का कूप है। यह भगवान शिव के ज्ञान का प्रकट स्वरूप है, इसीलिए ज्ञानवापी के दर्शन का अत्यंत माहात्म्य है।

आदिकाल से है ज्ञानवापी का अस्तित्व 

भारतीय संस्कृति और मंदिरों पर अनेक आक्रमण हुए। उन्हें नष्ट करने की कोशिशें की गईं, परंतु इतने आक्रमणों के बाद भी हमारी संस्कृति सुरक्षित है। हमारे धर्म स्थल अडिग हैं। ज्ञानवापी भी आदिकाल से अस्तित्व में है। कोई भी आक्रमण उसके अस्तित्व को नष्ट नहीं कर सका। पृथ्वी पर ज्ञान की उत्पत्ति का प्रतीक है यह ज्ञानवापी। कहा जाता है काशी अविनाशी है और काशी में स्थित यह ज्ञानवापी भगवान शिव के त्रिशूल से स्वयं शिव द्वारा इस ज्ञान के कूप का अस्तित्व मनुष्य के कल्याण के लिए सम्मुख आया। इसे मात्र एक कूप मानकर नहीं चला जा सकता। नंदी के पास इसकी स्थिति कुछ विशेष संकेत तो करती है। हमें उस संकेत को समझना है।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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