Demonetisation: नोटबंदी के छह वर्ष पूरे, जानें सरकार के इस फैसले ने बाजार में नकद लेन-देन पर क्या असर डाला?

Demonetisation impact on economy
Demonetisation impact on economy: देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पांच और हजार रुपये के नोटों पर बैन लगने के बाद शुरुआती कुछ दिन मुश्किलों भरे थे। नोटबंदी के कुछ दिनों बाद जब दो हजार, पांच सौ और दो सौ रुपये के नोट चलन में तब जाकर स्थिति सामान्य हुई।
आज यानी आठ नवंबर की तारीख देश की अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक अहम दिन के रूप में दर्ज है। आज ही के दिन छह वर्ष पूर्व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सौ और हजार रुपये के नोटों के चलन को वापस लेने की घोषणा की थी। आठ नवंबर की मध्य रात्रि से ही पांच सौ और हजार रुपये के नोट इतिहास बन गए थे और आगे चलकर चलन में दो हजार रुपये के नए गुलाबी नोट और पांच सौ रुपये के नए नोट आए। उसके कुछ समय बाद सौ और दो सौ रुपये के नोट भी प्रचलन में आए।
देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पांच और हजार रुपये के नोटों पर बैन लगने के बाद शुरुआती कुछ दिन मुश्किलों भरे थे। नोटबंदी के कुछ दिनों बाद जब दो हजार, पांच सौ और दो सौ रुपये के नोट चलन में तब जाकर स्थिति सामान्य हुई। उससे पहले लोगों को बैंकों की लंबी-लंबी कतार में लगकर अपने नोट बदलने पड़े। कई जगहों पर शादी-विवाह के मौके पर लोगों को खासी परेशानी झेलनी पड़ी थी। हालांकि एक बार जब बाजार में नए नोट चलन में आ गए तो धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई। नोटबंदी के बाद देश में करेंसी नोटों के प्रचलन में भी खासी तेजी देखने को मिली है।
फिलहाल देश में करेंसी नोटों के कैश सर्कुलेशन में करीब 72 फीसदी का इजाफा हो चुका है। हालांकि इस दौरान डिजिटल और यूपीआई के माध्यम से भुगतान का नया चलन भी देश में शुरू हो गया। काेरोना काल के दौरान इसमें और बढ़ोतरी आई और वर्तमान में डिजिटल पेंमेंट लगभग-लगभग करेंसी नोटों की तरह ही सामान्य हो चुका है। नोटबंदी के बाद देश में पब्लिक डाेमेन में नकद के रूप में मौजूद करेंसी में भी बड़ा इजाफा देखने को मिला है। भारतीय रिजर्व बैंक के 21 अक्तूबर 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार बीते छह वर्षों में देश में जनता के पास मौजूद करेंसी बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि विमुद्रीकरण के छह साल बाद और डिजिटल लेनदेन बढ़ने के बावजूद लोग अब भी नकदी का उपयोग बड़े पैमाने पर कर रहे हैं।
जनता के पास मौजूद 30.88 लाख करोड़ रुपये की करेंसी का आंकड़ा 4 नवंबर 2016 को समाप्त पखवाड़े के दौरान मौजूद करेंसी के स्तर से 71.84 प्रतिशत अधिक है। चार नवंबर 2016 को देश के पब्लिक डोमेन में 17.7 लाख करोड़ रुपये की करेंसी मौजूद थी। जनता के पास मौजूद मुद्रा से तात्पर्य उन नोटों और सिक्कों से है जिनका उपयोग लोग लेन-देन करने, व्यापार निपटाने और सामान और सेवाओं की खरीदारी के लिए करते हैं। प्रचलन में मौजूद मुद्रा से बैंकों में मौजूद नकदी को घटना के बाद यह आंकड़ा निकाला जाता है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार भुगतान के नए और सुविधाजनक डिजिटल विकल्पों के लोकप्रिय होने के बावजूद अर्थव्यवस्था में नकदी का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, पहले नोटबंदी और फिर कोरोना महामारी के दौरान लोग बड़े पैमाने पर नोटबंदी का उपयोग करने लगे हैं।
वर्ष 2019 में आरबीआई की ओर से डिजिटल भुगतान से जुड़े एक अध्ययन ने भी इस बात पर आंशिक रूप से मुहर लगाई है। अध्ययन में कहा गया है है कि हालांकि हाल के वर्षों में डिजिटल भुगतान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, पर आंकड़ों के अनुसार इसी दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में प्रचलन में मौजूद मुद्रा में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसके अनुसार डिजिटल भुगतान का चलन बढ़ने से देश में करेंसी के प्रचलन में कमी नहीं आई है। आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी के बाद भारत में डिजिटल तरीके से लेनदेन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है पर देश की जीडीपी के अनुपात में पारंपारिक रूप से यह फिर भी कम है।
एक ताजा नोट में एसबीआई से जुड़े आर्थिक मामलों के जानकारों ने कहा है कि चलन में मौजूद मुद्रा (Currency in Circulation, CIC) में दिवाली के हफ्ते के दौरान 7600 करोड़ रुपये की कमी गई है। वर्ष 2009 के दिवाली सीजन को छोड़ दें तो यह पिछले दो दशकों में नकद के इस्तेमाल में आई सबसे बड़ी कमी है। माना जा रहा है वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की अशंका के बीच नकद के इस्तेमाल में यह कमी दर्ज की गई है।
बता दें कि आठ नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1,000 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों को वापस लेने के निर्णय की घोषणा की थी। सरकार की ओर से उस समय कहा गया था कि यह कदम अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन के प्रचलन को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।