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BHU Hostels : शिक्षा के साथ स्वतंत्रता और सामाजिक बदलाव का समय-समय पर केंद्र रहे ये छात्रावास

वाराणसी, शैलेश अस्‍थाना। जब-जब परिवर्तन ने अंगड़ाई ली है, गंगा के पानी में उफान आया है, उसकी धारा बीएचयू के छात्रावासों से होकर बही है। यहां के युवाओं की समवेत शक्ति ने सदैव ही अत्याचारी शासन के विरुद्ध क्रांति का बिगुल फूंका है। योजनाबद्ध ढंग से लड़ाई को आगे बढ़ाया है। पूरे देश को दिशा दी है। यह परिवर्तनकामी क्रांति सभी क्षेत्रों में दिखी है, बात चाहे वह शिक्षा हो, स्वतंत्रता समर या फिर सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की।

महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने भारतीय शिक्षा परंपरा के गौरव को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 1916 में वसंत पंचमी के दिन काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे उनका ध्येय लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से भारतीयता और भारतीयों को बचाने की थी। उनके सपनों का शिक्षालय आज सर्व विद्या की राजधानी के रूप में स्थापित है।

यह दुनिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालयों में शामिल है। उनकी इच्छा थी कि एक ही परिसर में सभी विषयों की अधुनातन शिक्षा देकर आत्मनिर्भर और राष्ट्रीय संस्कारों से ओतप्रोत युवा पीढ़ी तैयार की जाए। इसके लिए उन्होंने बड़े-बड़े और सर्वसुविधायुक्त छात्रावासों का निर्माण कराया। इस कार्य में तत्कालीन भारतीय उद्यमियों, विभिन्न राजाओं और धनिकों ने मुक्तहस्त योगदान किया। सभी महलनुमा छात्रावासों के समक्ष हरे-भरे पार्क, पक्की सड़कें और सबके अपने-अपने क्रीड़ा के मैदान महामना की विस्तृत सोच का दर्पण है। इन सभी छात्रावासों का गौरवशाली इतिहास रहा है। विज्ञान हो या साहित्य, राजनीति या कानून, सभी विषयों के बड़े-बड़े धुरंधरों का इन छात्रावासों से जुड़ाव रहा है। अनेक राजनेता, विज्ञानी, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत इन्हीं छात्रावासों में रहकर निकले।

रुइया छात्रावास : ख्यात साहित्यकारों का रहा ठिकाना

विश्वविद्यालय के पहले छात्रावास का निर्माण मुंबई के उद्योगपति रुइया परिवार ने 1921 में कराया था। इस छात्रावास से हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डा. शिवमंगल सिंह सुमन, डा. नामवर सिंह, काशीनाथ सिंह, विश्वनाथ तिवारी, विश्वनाथ त्रिपाठी जैसे धुरंधर साहित्यकार निकले हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू भी कई बार इस छात्रावास में आए थे।

बिड़ला छात्रावास : क्रांतिकारियों का रहा ठिकाना

इस छात्रावास की स्थापना 1921 में प्रसिद्ध उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने अपने पिता राजा बलदेव दास बिड़ला की स्मृति में कराई थी। स्वतंत्रता संग्राम में इस छात्रावास के योगदान का गौरवशाली इतिहास रहा है। चंद्रशेखर आजाद, शचींद्र नाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों का यहां आना-जाना रहा तो 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इस छात्रावास की महत्वपूर्ण भूमिका रही। लोकनायक राजनारायण के नेतृत्व में आपातकाल में फिर इसने अपना क्रांतिकारी इतिहास दोहराया। हरिवंश राय बच्चन ने पहली बार मधुशाला का वाचन बिड़ला छात्रावास में ही किया था।

ब्रोचा छात्रावास : विज्ञान व सामाजिक क्रांति का अभ्युदय स्थल

ब्रोचा छात्रावास विश्वविद्यालय का तीसरा सबसे पुराना हास्टल है। 350 से अधिक कमरों से युक्त यह छात्रावास विज्ञान व सामाजिक क्रांति के नायकों की आश्रयस्थली रही है। बात करें तो भारत के प्रथम उपग्रह विज्ञानी प्रो. यूआर राव इसी छात्रावास में रहकर अध्ययन करते थे। इसी छात्रावास के कक्ष संख्या 309 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सर संघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने भी शिक्षा ग्रहण की थी।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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