पाकिस्तान के पहले PM लियाकत जैसे ही बोले मेरे हमबिरादरों:सामने बैठे शख्स ने सीने में दागी दो गोली; पाक आर्मी पर नेताओं के खून के छींटे

पाकिस्तान में लॉन्ग मार्च निकाल रहे पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर 3 नवंबर को जानलेवा हमला होता है। गोली उनके पैर में लगती है और वह बच जाते हैं। हमले का आरोप पाकिस्तान की फौज पर लग रहा है, क्योंकि सत्ता से हटाए जाने इमरान लगातार पाक फौज पर निशाना साध रहे हैं।
पाक फौज पर पहली बार कोई आरोप नहीं लग रहा है। 71 साल पहले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की भी हत्या में पाकिस्तान आर्मी का नाम आया था। वहीं 2007 बेनजीर की हत्या के मामले में तो खुद पाकिस्तान आर्मी के प्रमुख रहे जनरल परवेज मुर्शरफ ने फौज के होने की बात मानी थी। भास्कर एक्सप्लेनर में हम आज पाकिस्तान में हुई सियासी हत्याओं के बारे में बताएंगे जिनमें सेना पर आरोप लगे…
चल क्या रहा था
1947 की बात है। भारत दो हिस्सों में बंट चुका था। 15 अगस्त 1947 को दूसरे हिस्से यानी पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने लियाकत अली खान। लियाकत मोहम्मद अली जिन्ना की पसंद थे। अक्टूबर 1947 में कश्मीर में युद्ध और बलूचिस्तान में संघर्ष के बाद लियाकत अली की लीडरशिप एबिलिटी पर शक किया जाने लगा।
1947-48 की अवधि में लियाकत अली और पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना के बीच संबंध खराब होने लगे। सीनियर मिलिट्री लीडरशिप और स्वयं जिन्ना लियाकत सरकार की आलोचना करने लगे। इसी बीच 1948 में जिन्ना की मौत हो जाती है। जिन्ना के बाद अब लियाकत ही मुस्लिम लीग के सबसे बड़े नेता बनते हैं।
1949 के अंत और 1950 की शुरुआत में लियाकत को धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्या का सामना करना पड़ा। ऐसे में लगने लगा था कि आजादी के 3 सालों के भीतर भारत-पाकिस्तान के बीच दूसरा युद्ध हो सकता है। ऐसे समय में लियाकत अली खान भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मिलते हैं। इसके बाद 1950 में लियाकत-नेहरू पैक्ट पर समझौता करते हैं। यह समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने, तनाव को कम करने के लिए था।
यहीं से लियाकत अली और पाकिस्तान की मिलिट्री के बीच मतभेद सामने आने लगे। पाकिस्तानी मिलिट्री का एक धड़ा लियाकत के भारत के प्रति डिप्लोमैटिक झुकाव से नाराज था। जिन्ना की मौत के बाद उनको सत्ता से हटाने की कोशिश की जाने लगी। पाकिस्तान के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मेजर जनरल फौज के कुछ जनरलों ने तख्तापलट की कोशिश भी की, लेकिन उसे नाकाम कर दिया गया। इसे रावलपिंडी कॉन्सिपिरेसी के नाम से जाना जाता है। इसके बाद मुस्लिम लीग पर भी लियाकत की पकड़ कमजोर होती गई।
हमले का दिन
16 अक्टूबर 1951 का दिन था। स्थान था रावलपिंडी का कंपनी गार्डन। मुस्लिम लीग की सभा होनी थी। 1 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जमा थी। सभा स्थल पर मुख्य वक्ता के आने का इंतजार हो रहा था। पाकिस्तान के PM और मुस्लिम लीग के नेता लियाकत अली खान पर स्टेज पर पहुंचते हैं। भीड़ तालियां बजाकर उनका स्वागत करती है। लियाकत के स्टेज के ठीक सामने VIP और खुफिया अफसरों के बैठने की व्यवस्था थी।
लियाकत माइक पकड़ते ही और बोलते हैं- ऐ मेरे हमबिरादरो। तभी भीड़ से एक-एक करके दो गोलियां चलती हैं। सभा में कुछ सेकेंड के लिए सन्नाटा छा जाता है। इसके बाद गोलियों की आवाज सुनकर भगदड़ मच जाती है। हत्यारे के निशाने पर कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान के PM लियाकत अली खान थे। जब तक सुरक्षाकर्मी हरकत में आते गोलियां लियाकत अली का सीना चीर चुकी थीं। उनके शरीर से बेतहाशा खून बह रहा था। बाद में सुरक्षाबलों की गोलियों ने हत्यारे को भी मौके पर ही मार गिराया।
फौज पर शक की वजह
- पाकिस्तानी अफसरों ने तुरंत ही घोषणा की कि लियाकत का हत्यारा अफगानिस्तान का रहने वाला सईद अकबर खान बबराकजई है। हालांकि, हत्या की वजह को नहीं बताया गया।
- वहीं अफगानिस्तान सरकार ने तुरंत ही जवाब देते हुए कहा था कि एंटी नेशनल एक्टिविटी के चलते अकबर की नागरिकता पहले ही छीनी जा चुकी है और बंटवारे से पहले ब्रिटिश सरकार ने नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविंस (अब खैबर पख्तूनख्वा) में उसे रिफ्यूजी का दर्जा दिया था।
- कुछ दिन बाद NYT की स्टोरी में कहा गया कि पाकिस्तान सरकार अकबर को हर महीने 450 रुपए का गुजारा भत्ता भी दे रही थी।
- बताया जाता है कि हत्यारा लियाकत अली के स्टेज के ठीक सामने उनकी सुरक्षा में मौजूद CID के लिए रिजर्व कुर्सियों पर बैठा था, जबकि वो CID से कभी नहीं जुड़ा रहा।
- लियाकत को गोली मारते ही हत्यारे अकबर को जिंदा पकड़ने के बजाय तुरंत गोली मार दी जाती है।
- अगस्त 1952 में घटना की जांच से जुड़े अहम अधिकारी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ स्पेशल पुलिस नवाबजादा एतजाजुद्दी की एक प्लैन क्रैश में मौत हो जाती है।
- जिस वक्त यह दुर्घटना हुई वह लियाकत अली खान की मौत से जुड़े कुछ अहम सबूत के साथ कराची जा रहे थे, लेकिन ये सबूत भी जलकर खाक हो गए।
बेनजीर भुट्टो: सिर में गोली मारने के बाद हमलावर ने खुद को उड़ा लिया
चल क्या रहा था
2007 की बात है। पाकिस्तान की पूर्व PM बेनजीर भुट्टो अमेरिका में 8 साल से निर्वासित जीवन जी रही थी। तभी 25 सितंबर 2007 को बेनजीर को पाकिस्तान से एक फोन आता है। फोन पर पाकिस्तान लौटने पर उन्हें चेतावनी दी जाती है। साथ ही कहा जाता है कि वापस लौटने पर अगर उनके साथ कुछ भी होता है तो वो इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।
दरअसल ये फोन करने वाला कोई और नहीं उस वक्त के पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ थे। इसके तीन हफ्ते बाद बेनजीर पाकिस्तान वापस लौटती हैं। बेनजीर भुट्टो इससे पहले पाकिस्तान की दो बार प्रधानमंत्री बनीं, लेकिन लेकिन मुल्क की फौज ने उन पर भरोसा नहीं किया और भ्रष्टाचार के आरोपों की मदद से सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया।
हमले का दिन
27 दिसंबर 2007 का दिन था। रावलपिंडी के लियाकत बाग में 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ थी। शाम के 3:30 बजे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की अध्यक्ष बेनजीर भुट्टो यहां पर रैली को संबोधित करने के लिए पहुंचती हैं। बेनजीर आधे घंटे तक रैली को संबोधित करती हैं। स्पीच खत्म होते ही बेनजीर जिंदाबाद और बेनजरी वजीरे आजम के नारों से पूरा इलाका गूंज उठा।
स्पीच खत्म करने के बाद शाम 5 बजे बेनजीर अपनी लैंडक्रूजर गाड़ी में बैठीं। बेनजीर भुट्टो की गाड़ियों का काफिला अभी निकलना शुरू ही हुआ था कि इस बीच बड़ी संख्या में समर्थक लियाकत बाग गार्डेन के गेट पर पहुंच गए और उन्होंने बेनजीर भुट्टो के समर्थन में नारे लगाने शुरू कर दिए। भीड़ देख कर बेनजीर खड़ी हो गईं और कार के सन रूफ से उनका सिर और कंधे दिखाई देने लगा।
इसी बीच कार के बगल में खड़ा व्यक्ति पिस्टल निकालता है। तभी एक सुरक्षाकर्मी उसे रोकने की कोशिश करता है, लेकिन सेकेंडों में तीन फायर होते हैं। गोली सीधे बेनजीर के सिर में लगती है। बेनजीर अपनी कार की सीट पर गिर जाती हैं। जैसे ही वो नीचे गिरती हैं आत्मघाती हमलावर बम से खुद को उड़ा लेता है। इस हमले में बेनजीर समेत 25 लोग मारे जाते हैं।
फौज पर शक की वजह
- वैसे तो बेनजीर भुट्टो की हत्या में पाकिस्तानी तालिबान का हाथ बताया जाता है। लेकिन 2017 में एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के तानाशाह जनरल रहे परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार किया था कि शायद बेनजीर भुट्टो के कत्ल में पाकिस्तान का एस्टैब्लिशमेंट शामिल था। पाकिस्तान में एस्टैब्लिशमेंट शब्द का इस्तेमाल फौज के लिए किया जाता है।
- इसी इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या एस्टैब्लिशमेंट के कुछ अराजक तत्व बेनजीर की हत्या को लेकर पाकिस्तानी तालिबान के संपर्क में थे, तो मुशर्रफ ने जवाब दिया था, ये मुमकिन है, क्योंकि हमारा समाज मजहबी तौर पर बंटा हुआ है। ऐसे लोग उनकी हत्या का कारण बन सकते हैं।
- इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर भुट्टो को पर्याप्त सुरक्षा नहीं देने के आरोप भी लगे थे। मामले की जांच कर रहे सरकारी वकील चौधरी जुल्फिकार अली की 2013 में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।
- बेनजीर भुट्टो के बड़े भाई मीर मुर्तजा भुट्टो की भी सितंबर 1996 में कराची में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मुर्तजा की पत्नी और बेटों ने बेनजीर भुट्टो और उनके पति आसिफ अली जरदारी पर हत्या करवाने का आरोप लगाया था। 1985 में बेनजीर भुट्टो के दूसरे भाई शाहनवाज भुट्टो को फ्रांस में रहस्यमय परिस्थितियों में जहर देकर हत्या कर दी गई।
- पाकिस्तान के पूर्व मंत्री रहे उमर असगर खान 2002 में रहस्यमय परिस्थितियों में अपने ससुराल में पंखे से लटके पाए गए थे। पुलिस ने दावा किया था कि उमर असगर ने आत्महत्या की थी, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और साक्ष्यों ने हत्या की तरफ इशारा किया था।
- 4 जनवरी 2011 को पाकिस्तान के इस्लामाबाद में पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को उनके सुरक्षा गार्ड मुमताज कादरी ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता को जब गोली मारी तब वह मार्केट में अपनी कार में थे।
- तासीर ने एक ईसाई महिला आसिया बीबी को क्षमा करने का आह्वान किया था जो ईशनिंदा की दोषी थी। आसिया बीबी को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। आसिया बीबी से मिलने के लिए सलमान तासीर जेल भी गए थे। कहा जाता है कि उनकी मौत का कारण भी ईशनिंदा कानून के प्रति उनका विरोधी रवैया था।
- मार्च 2011 पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज भट्टी की तालिबानी बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। भट्टी विवादास्पद ईशनिंदा कानून के विरोधी थे। उन्होंने कई बार इस कानून के विरोध में अपनी आपत्ति को जाहिर किया था। उन्हें पहले से ही जान से मार डालने की धमकियां मिल रही थीं। भट्टी पाकिस्तान में पहले ईसाई समुदाय से पहले मंत्री थे।
- 2008 में पाकिस्तान के PM रहे यूसुफ रजा गिलानी की हत्या का अटेंप्ट किया गया था। इस दौरान उनकी कार पर हमलावरों ने गोलियां बरसाईं थी, लेकिन कार में नहीं होने के चलते वे बच गए थे। यूसुफ रजा गिलानी पर 2008 से 2012 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे थे।पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को भी कई बार मारने के प्रयास किए गए लेकिन वे बच गए। 14 दिसंबर 2003 को मुशर्रफ के काफिले के रावलपिंडी पुल से निकलने के कुछ मिनट बाद एक जोरदार धमाका हुआ था। 25 दिसंबर 2003 को को मुशर्रफ को एक बार फिर मारने का प्रयास किया गया, लेकिन वे बच गए। 6 जुलाई 2007 को मुशर्रफ एक बार फिर बच गए जब रावलपिंडी में उनके विमान पर लगभग 36 राउंड फायर किए गए थे।