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हिंदी साहित्य के इतिहास को नई दृष्टि दी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने, बीएचयू में किया संस्कृत व ज्योतिष में अध्ययन

जागरण संवाददाता, वाराणसी : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदला। उनके द्वारा लिखित ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’ ने हिंदी साहित्य के इतिहास को देखने का नया दृष्टिकोण दिया। उनकी पुस्तकों ‘नाथ संप्रदाय’ और ‘कबीर’ ने हिंदी साहित्य में निर्गुण भक्ति साहित्य को रेखांकित किया तो हिंदी साहित्य की आलोचना को भरपूर समृद्ध बनाया। हिंदी को उसके विकास के मार्ग दिखाने वाले आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 1929 में संस्कृत साहित्य में शास्त्री किया, 1930 में ज्योतिष में आचार्य की उपाधि ली। बाद में उन्होंने विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया। इस बीच अलग-अलग कारणों से तीन बार विश्वविद्यालय छोड़ा था।

बलिया जनपद के ओझवलिया गांव के आरत दुबे का छपरा मौजा में श्रावण शुक्ल एकादशी 19 अगस्त 1097 को जन्मे आचार्य द्विवेदी का वास्तविक नाम बैजनाथ द्विवेदी था। अध्ययन काल में वह विश्वविद्यालय के रुइया छात्रावास में रहते थे। अध्ययन पूर्ण होने के बाद आठ नवंबर 1930 को शांति निकेतन में अध्यापन कार्य शुरू किया। 1950 में बीएचयू के आमंत्रण पर यहां प्राध्यापक पद ग्रहण किया और हिंदी विभाग के अध्यक्ष बनाए गए। 10 वर्ष बाद मुदालियर आयोग की रिपोर्ट पर नियुक्ति में मानकों के अनुपालन की बात पर उनके समेत 18 प्राध्यापकों को हटा दिया गया। वह पंजाब विश्वविद्यालय चले गए और 1967 तक वहां अध्यापन किया। पुन: विश्वविद्यालय ने उन्हें 1967 में बुलाया और रेक्टर बनाया। बाद में उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। 19 मई 1979 को उनका निधन हो गया।

अतुलनीय व्यक्तित्व व कृतित्व है आचार्य का : डा. पांडेय

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डा. विश्वनाथ पांडेय बताते हैं कि आचार्य द्विवेदी उनके बड़े पिताजी के छात्र रहे। एक बार बड़े पिताजी का व्याख्यान जब महामना सभागार में चल रहा था, वह चुपके से आकर सबसे पीछे बैठ गए और सुनते रहे। मेरी दृष्टि पड़ी तो उन्होंने चुप रहने का संकेत किया। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व अतुलनीय रहा। वह अपने आप में पूरी एक परंपरा थे। हिंदी जगत में उनका योगदान मील का पत्थर है।

उदारता और सहनशीलता का असीम कोष था उनका व्यक्तित्व

प्रसिद्ध आलोचक व गद्यकार, ज्ञानपीठ सम्मान से पुरस्कृत प्रो. विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि अपने शिष्यों के प्रति उनकी उदारता और विरोधियों के प्रति सहनशीलता का गजब का समन्वय था उनमें। बचपन में काफी अभाव झेलने के चलते वह सबका दुख समझते थे। मैं जब बीएचयू में प्रवेश के लिए पहली बार उनसे मिला और चरण-स्पर्श कर जाने लगा तो मुझे रोक कर पूछे कि तुम्हें भूख तो लगी होगी, कुछ खा लो, फिर जाओ। एक अनजान के प्रति उनका यह व्यवहार हृदय को छू गया। फिर तो 1957 से 1979 तक उनके पारिवारिक सदस्य की तरह रहा। हिंदी विरोधियों के बारे में उनका कहना था कि वह भी अपने देश अपने ही लोग हैं, वे अपने ढंग से भारत की उन्नति करना चाहते हैं। वह आजीवन किसी भी राजनीतिक या वैचारिक प्रतिष्ठान से जुड़कर नहीं रहे। कभी किसी का प्रतिकार नहीं किया। ‘भीष्म को क्षमा नहीं किया गया’ शायद उनके इसी मनोभाव की अभिव्यक्ति है।

पुण्यतिथि पर विशेष….

जन्म – 19 अगस्त 1907

मृत्यु – 19 मई 1979

जन्म स्थान – आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया

रचनाएं – हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य, हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास, हिंदी साहित्य का आदिकाल, नाथ संप्रदाय, सूर साहित्य, कबीर, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा, चारु चंद्रलेख, मृत्युंजय रवींद्र, आलोक पर्व, कुटज आदि।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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