Follow us On Google
Uncategorized
Trending

वॉट्सएप के संस्थापक जेन कूम के संघर्ष और सफलता की कहानी।

“संघर्ष से भरी ये आफताबो की कड़ी है,मेहनत और परेशानियाँ हर घड़ी,दर घड़ी है।पर झुकते नही जो, वो रुकते नही, क्योकी ख्वाइश-ए-मुसीबते ही  सफलता की कड़ी है।”

अगर मेहनत, लगन विश्वास, और इच्छा है तो कुछ भी पाया जा सकता है। इतिहास गवाह है कि जितने भी प्रतिभाशाली हुए, उन्होँने अपने मेहनत के दम पर अर्शँ से फर्श तक का सफर, संघर्षो की सीढ़ीयाँ चढ़कर ही पूरा किया। इंसान जब खुद को पहचानता है, खुद मे झाँकता है, खुद की सुनता है और फिर जब अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है तो एक मिसाल ही कायम होती है।

वैसे तो कई लोग है जिनके सफलता को सलाम किया जाता है, पर इनमे भी कुछ ऐसे होते है यानि इतने ख़ास कि मस्तिष्क भी सोचने पर मजबूर हो जाता है कि  वाकई मेहनत से सब कुछ सम्भव है।
कुछ के सफलताओं की कहानियाँ तो सामान्य होती है उनके सुविधाओ के कारण, पर कुछ कहानियाँ ऐसी होती है जिन्हेँ सुनकर बिल्कुल हैरत होती है, और एक कहावत की पुष्टी हो जाती है कि ‘कमल कीचड़ मेँ ही खिलता है।'[ads-post] तो ये संघर्ष की कहानी भी ऐसी ही है, जिसकी जगह और कोई नहीं ले सकता। ये कहानी एक ऐसे ही शख्स की है जिसने जिंदगी में कठिन परिश्रम और अपनी काबिलियत के बल पर दुनिया के शीर्ष कारोबारियों की सूची में खुद को शामिल किया। मज़दूर के इस बेटे ने अपने करियर की शुरुआत दुकानों में झाड़ू लगाकर शुरू की थी। इतना ही नहीं इस शख्स को अपनी भूख मिटाने के लिए कई घंटों तक कतार में खड़े रहकर मुफ़्त भोजन का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन सारी मुसीबतों का डटकर मुकाबला करते हुए इसने दुनिया के सामने एक ऐसा प्रोडक्ट पेश किया कि वो पांच साल के भीतर ही प्रौद्योगिकी उद्योग के शीर्ष खरबपतियों की कतार में शामिल हो गए।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं नेटवर्किंग साइट व्हाट्सएप के सह-संस्थापक जेन कूम की।  युवा पीढ़ी के लिए ‘वॉट्सएप’ कोई अनजाना नाम नहीँ है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैँ कि अपनी शुरुआत के महज पांच सालोँ मेँ ही इसके 45 करोड़ यूजर हो गये हैं। और सबसे बड़ी बात है कि इस ऐप पर विज्ञापनो के लिए कोई जगह नही है। इसका रेवेन्यू मॉडल पूरी तरह ‘सब्सक्रिप्शन ‘पर आधारित है। इसके लिए युजर्स को प्रथम साल यूज करने के बाद प्रतिवर्ष 0.99 डॉलर की फीस देनी होती है।

सफलता की लगभग हर कहानी के पीछे संघर्षो की दास्तां छिपी होती है। ‘वाट्सएप’ के संस्थापको-जेन कूम और ब्रायन एक्टन ने भी ये दौर देखा है।
जान कर हैरानी होती है कि जिस  फेसबुक ने अरबोँ डॉलर मेँ इनकी कंपनी का अधिग्रहण किया है, उसी ने एक समय इन्हेँ अपने यहाँ नौकरी देने से इनकार कर दिया था।

सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में क्रांति लाने वाले कूम का जन्म यूक्रेन के शहर कीव मे 24 फरवरी 1976 को हुआ था। 16 साल की उम्र मे मजबूरी मे अपने पिता को छोड़ कर माँ और दादी के साथ अमेरिका चले आए।
सोवियत संघ में मिले नोटबुक का इस्तेमाल कर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बुरी आर्थिक हालातों को देखते हुए उन्होंने एक किराने की दुकान में झाडू लगाने का काम शुरू कर दिया। इसी बीच इनकी माँ कैंसर से पीड़ित हो गयी। माँ को सरकार से मिले इलाज़ भत्ते के कुछ पैसे से उन्होंने किताब खरीद कर कंप्यूटर नेटवर्किंग का ज्ञान हासिल किया और  बाद में फिर उसे पुरानी किताबें खरीदने वाली दुकान पर बेच दीं।
उसके बाद कूम सिलिकॉन वैली के एक सरकारी विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और साथ-ही-साथ एक कंपनी में सिक्यूरिटी टेस्टर का काम करने लगे। इसी दौरान साल 1997 में उन्हें याहू कंपनी में काम मिल गया और उनकी मुलाकात ब्रायन ऐक्टन नाम के एक शख्स से हुई, जो बाद में उनके बिज़नेस पार्टनर भी बने। नौ सालों तक याहू में काम करने के बाद कूम ने लगभग पच्चीस लाख रूपये की सेविंग कर जॉब को अलविदा कर दिया।

लगभग एक साल ऐसे ही बीतने के बाद उन्होंने कुछ नया करने को सोचा। जनवरी 2009 में कूम ने एप्पल का आईफोन खरीदा। लेकिन उनके जिम की पॉलिसी के अनुसार वो अपना फ़ोन वहां इस्तेमाल नहीं कर पाते थे। फिर उसने स्काइप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया लेकिन एक दिन ये अपना पासवर्ड भूल गये। इन परेशानियों से तंग आकर उन्होंने एक ऐसे एप को दुनिया के सामने लाने के बारे में सोचा जो महज़ एक फ़ोन नंबर से लोगों को आपस में जोड़ कर रखे।
उन्होंने अपने मित्र ऐक्टन को अपने आईडिया से अवगत कराया और फिर दोनों ने मिलकर ‘व्हाट्सएप’ पर काम करना शुरू कर दिया।

साथ-ही-साथ दोनों किसी अच्छे कंपनी में जॉब की भी तलाश कर रहे थे। किन्तु फेसबुक, ट्विटर जैसी सारी कंपनियों ने इन्हें नकार दिया।
अपनी योग्यता को नकारता देख इन्होँने अपनी हिम्मत नही हारी और मेहनत के साथ लग गये अपने काम मे ताकि लोगो को अपने कार्य के जरिए जवाब दे सके, मुसीबतो ने इन्हेँ अपने भावी प्रोजेक्ट को लांच करने की दिशा में और मज़बूती दी। इसी दौरान याहू के कुछ पूर्व अधिकारीयों ने इनके प्रोजेक्ट में फंडिंग करने की इच्छा जताई। फिर सब ने मिलकर दुनिया के सामने ‘व्हाट्सएप’ के कांसेप्ट को पेश किया।
साल 2010 के शुरुआती दिनों में लॉन्चिंग के बाद कंपनी  5000 डॉलर प्रति माह की आमदनी कमाने लगी।
हालांकि यह काफी कम ही था लेकिन साल 2011 में इस कांसेप्ट ने सफलता की ऐसी उड़ान भरी कि उस वक़्त की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग को भी सदमे में डाल दिया।

उसके बाद कूम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2014 में व्हाट्सएप की शानदार सफलता से हैरान होकर फेसबुक के सीईओ जुकरबर्ग ने कूम को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा। आज कूम भले ही दुनिया के अमीर पूंजीपतियों में शामिल हैं किन्तु आज भी शुरुआती दिनों में किये संघर्षों की व्यथा उनके जेहन में हैं। जब वो फेसबुक के हाथों व्हाट्सएप का डील कर रहे थे तो उन्होंने उसी स्थान को चुना था, जहाँ कभी अपने माँ के साथ घंटो लाइन लगाकर खाना पाने का इंतजार करते थे।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

Follow us On Google

Mrityunjay Singh

Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!

Adblock Detected

Please disable your Adblocker