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वाराणसी में भोर की बेला से ही प्रतिदिन सतरंगी मेला, अनूठे रिवाज, निराले अंदाज और फक्कड़ी मिजाज

वाराणसी, कुमार अजय। ऐसे ही नहीं तीन लोकों से न्यारी होने का तमगा हासिल है बाबा औघड़दानी की राजधानी काशी को। अनूठे रिवाज, निराले अंदाज और फक्कड़ी मिजाज। इसे खुद-ब-खुद अलग खड़ा करते हैैं। मसलन, सुबह की ही बात ले लें। सूरज हर कहीं निकलता है, सुबह हर कहीं होती है, मगर बनारस की सुबह अंदाज के मामले में किसी और को जरा सा भी मुंह न लगने दे। अब जरा सोचिए कि कितनी खूबसूरत होती होगी बनारस की भोर…। दुनिया के और शहरों में सुबह की शुरुआत जहां दैनंदिन गतिविधियों से होती है, वहीं यह शहर जगता है हर रोज सजीले मेले के साथ।

अलसुबह मुंह अंधेरे में जब बाकी दुनिया नींद की आगोश में होती है। नित नए कलेवर में गंगा के घाटों से लगायत मंदिरों की ड्योढिय़ों तक सजने वाले इस मेले में रौनक के चटख रंग भरते हैैं नेमि स्नानार्थी। रोजाना के दर्शनार्थी। सुबह के बाजार। मल्लाहों की पुकार। और भी न जाने कौन-कौन। मंदिरों में सजने वाली मंगला आरती मंत्रोच्चार की अनुगूंज, घंटे-घडिय़ालों की गूंज इस मनोहारी मेले का पाश्र्व संगीत सजाती हैं। इसे उत्सवी उल्लास की पराकाष्ठा तक पहुंचाती हैैं। मेले के इस रेले की शुरुआत रात के तीसरे पहर से ही हो जाती है। जब दो गमछों में सजे लोहटिया के राजेंद्र कुमार उर्फ पप्पू भइया, लंबी पगड़ी वाले कबीर मठ के स्वामी जी, पातालपुरी मठ के ब्रह्मïचारी जी, टेढ़हिया छड़ी खड़काते-खड़ाऊं बजाते शीतला मंदिर के महंत शिव प्रसाद जी, पुजइया वाली डोलची डोलातीं भगवंती चाची और उनके जैसे हजारों नेमिजन तारसप्तक में हरिनाम सुमिरते बढ़ चलते हैैं अपने-अपने घाटों की ओर। हर-हर महादेव शंभो, काशी विश्वनाथ गंगे की रटना-रटंत से गूंजती शहर की सड़कें और गलियां भी इसी बहाने घाटों पर सजने वाले मेलों तक अपनी हाजिरी दर्ज करा देते हैैं।

पौ फटने के पूर्व तक शहर के चार अलग-अलग क्षेत्रों से निकलने वाली शिव प्रभातियां शिवद्वार के डेढ़सी पुल के मुहाने पर पहुंचकर जब बाबा को प्रणाम कर रही होती हैैं तो यहां पर एक लघु सागर के रूप में उतरे लघु भारत की झांकी आकार ले चुकी होती है। भोर की परछाईं उतरने तक यह मेला सज चुका होता है। वैसे तो इस उत्सवी छटा की बहार कहीं कम कहीं ज्यादा हर घाट पर ही होती है, मगर सड़क से सीधे जुड़े होने के अतिरिक्त लाभ के चलते राजेंद्र प्रसाद घाट, दशाश्वमेध घाट, शिवाला घाट, राजघाट और असि घाट पर मेले के रंग कुछ ज्यादा ही गहरे होते हैैं।

घाट की सीढिय़ां उतरते वक्त ‘ई गोरकी मेम हमार… ई टोपी वाला… ई बोरा वाला… ई झोरा वाला… जैसी कोई करारी सी हांक अगर कर्ण कुहरों से टकराए तो कृपया विचलित न हों। इत्मीनान रखें। अधखिली भोर में यहां किसी की नीलामी नहीं हो रही। यह तो बस परंपरा है मल्लाहों की नौका यात्री बीछने (चुनने) की।

‘भारा नाम से जाने जाने वाले इस नियम के तहत मल्लाहों के सरदार सीढिय़ों के ऊपर किसी यात्री को देखते ही अपने हांक की पहली मुहर लगा देते हैैं। इसके बाद तो उस यात्री के नौकायन की कोई डील होगी तो बीछने वाले का हिस्सा पूरी तरह सुरक्षित होगा। वायदा कारोबारियों को भी चकित करने वाली मल्लाही चौधरान की पीढिय़ों से चली आ रही यह परंपरा भी मेले का एक अनूठा रंग है।

अब बात नैत्यिक स्नान पर्व के बहाने इस मेले को रौनक की सौगात बख्शने वाले नेमि स्नानार्थियों की जिनके लिए गंगा कोई नदी नहीं, केवल मां है। आप बड़का ढोल बजाकर गंगा प्रदूषण का राग अलापते रहें, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये तो बस इतना जानते हैैं कि गंगा मइया हर डुबकी के साथ उन्हें तार देंगी, भवसागर के पार उतार देंगी। गंगा पार से उन्मुक्त गंगा स्नान की मौज में मगन नाव से इस पार उतर रहे मेटाफिजिक्स के अवकाश प्राप्त प्रो. नरेंद्र मुखोपाध्याय कहते हैैं- ‘इतनी दुर्गति के बाद भी गंगा अब तक जी रही हैं, तो बस इसी मासूम श्रद्धा के बूते। मेले से विदा लेते हुए नमन इस नगरी की उन तमाम विलक्षणताओं को जिनके लिए मत्स्य पुराण में कहा गया है – देवो-देवी नदी गंगा, मिष्ठमन: शुभागति, वाराणस्या विशालाक्षी: वासम कस्य न रोचते। (अर्थात- जहां महादेव हैैं, गंगा नदी हैैं, मिठाइयों से मुंह मीठा है और शुभ गति भी है, ऐसे वाराणसी में रहना ऐ विशाल आंखों वाली भला किसे न भाएगा।) नित्योत्सवा काशी अभिनंदन।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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