भारत ही नहीं अमेरिका, चीन, जापान, ब्राजील जैसे देशों में भी आरक्षण की पद्धति

नई दिल्ली, जेएनएन। लंबे समय तक जाति आधारित भेदभाव के चलते समाज में पिछड़ों के सशक्तीकरण को लेकर आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। एक निश्चित अवधि के लिए हुए इस प्रविधान की कभी समीक्षा की जरूरत नहीं समझी गई कि आखिर इससे जरूरतमंदों का कितना कल्याण हुआ। इसकी जगह यह व्यवस्था अब तक देश में जारी है। कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसद आरक्षण देने की व्यवस्था की। भले ही यह प्रविधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित 50 फीसद कोटे से इतर था, फिर भी इसे आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की शुरूआत माना गया। केंद्र सहित देश के कई राज्यों में इसे लागू भी किया गया है लेकिन इसे रोकने के लिए कई याचिकाएं शीर्ष अदालत में डाली जा चुकी हैं। अब सुप्रीम कोर्ट इस प्रविधान की संवैधानिकता की सुनवाई करने जा रहा है।
दरअसल आर्थिक आधार पर आरक्षण का सवाल जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था के प्रभावी नतीजे न निकलने पर उठते रहे हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का सवाल न तो जातीय है और न ही क्षेत्रीय। इसका सीधा संबंध भारत के नागरिक से है। बेशक आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का विकल्प नहीं हो सकता लेकिन सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक न्याय के संवैधानिक संकल्प को पूरा करना भी राज्य का ही कर्तव्य है। ऐसे में आरक्षण को दिए जाने के तरीके और प्रविधान की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।
विकसित और विकासशील देशों में आरक्षण
भारत ही नहीं विदेश में भी आरक्षण की पद्धति है। अमेरिका, चीन, जापान, ब्राजील जैसे देशों में भी आरक्षण है।
विकसित देश
अमेरिका: यहां आरक्षण को अफरर्मेटिव एक्शन कहते हैं। आरक्षण के तहत यहां नस्लीय रूप से भेदभाव झेलनेवाले अश्वेतों को कई जगह बराबर प्रतिनिधित्व के लिए अतिरिक्त नंबर दिए जाते हैं। वहां की मीडिया, फिल्मों में भी अश्वेत कलाकारों का आरक्षण निर्धारित है।
कनाडा: यहां समान रोजगार का प्रविधान है। जिसके तहत फायदा वहां के सामान्य तथा अल्पसंख्यकों को होता है। भारत से गए सिख इसके उदाहरण हैं।
स्वीडन: यहां जनरल अफर्मेटिव एक्शन के तहत आरक्षण मिलता है।
विकासशील देश
ब्राजील: यहां आरक्षण को वेस्टीबुलर के नाम से जाना जाता है। इस कानून के तहत ब्राजील के संघीय विश्वविद्यालयों में 50 फीसद सीटें उन छात्रों के लिए आरक्षित कर दी गई हैं, जो अफ्रीकी या मूल निवासी गरीब परिवारों से हैं। हर राज्य में काले, मिश्रित नस्लीय और मूल निवासी छात्रों के लिए आरक्षित होने वाली सीटें उस राज्य की नस्लीय जनसंख्या के आधार पर होती हैं।
दक्षिण अफ्रीका: काले गोरे लोगो को समान रोजगार का आरक्षण है। अफ्रीका की क्रिकेट टीम में आरक्षण लागू किया गया है। इसके तहत राष्ट्रीय टीम में गोरे खिलाड़ियों की संख्या पांच से अधिक नहीं होनी चाहिए।
मलेशिया: मलेशिया में 60 फीसद लोग भूमिपुत्र हैं, 23 फीसद चीनी मूल के हैं और सात फीसद भारतीय मूल के हैं। बाकी लोग अन्य नस्लों के हैं। क्योंकि भूमिपुत्र पारंपरिक रूप से शिक्षा और व्यापार में पीछे रहते हैं, उन्हें राष्ट्रीय नीतियों के तहत सस्ते घर और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता मिलती है।