जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पर लगाया अवैध नामांतरण का आरोप

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित 2.77 एकड़ जमीन के नामांतरण (राजस्व दस्तावेज में नाम चढ़वाना) प्रक्रिया पर राजा जौनपुर की तरफ से एतराज दर्ज कराया गया है। इसके लिए विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में दाखिल नामांतरण वाद में राजा जौनपुर की तरफ से आपत्ति दर्ज कराई गई है।
विश्वविद्यालय के उत्तर तरफ तहसील सदर के मौजा जैतपुरा के आराजी नंबर 75/1 व 75/2 के दो गाटा में 2.77 एकड़ जमीन स्थित है। राजस्व दस्तावेजों में इस भूमि पर राजा जौनपुर यादवेंद्र दत्त दुबे पुत्र राजा कृष्ण दत्त दूबे के विधिक वारिस राजा अवनिंद्र दत्त दुबे का नाम दर्ज चला आ रहा हैै। विश्वविद्यालय को 70 वर्ष बाद याद आया कि यह जमीन उनकी है और उस पर राजा जौनपुर का नाम चल रहा है।
कुलसचिव ने इसी भूमि पर दर्ज राजा का नाम काट कर विश्वविद्यालय का नाम राजस्व दस्तावेजों में दर्ज कराने के लिए तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में वाद दाखिल किया गया। विश्वविद्यालय का दावा है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 1953 में भूमि, उसमें स्थित भवन, कुआं आदि का मूल्यांकन करने के बाद मुआवजा देकर अधिग्रहण कर लिया गया। साथ ही राजा यादवेंद्र दत्त दूबे द्वारा 1959 में मंदिर व बावली आदि दान देने की भी बात कही गई है। इस बात की जानकारी होने पर राजा जौनपुर के अधिवक्ता संजय सिंह ने तहसीलदार न्यायिक के न्यायालय में आपत्ति दर्ज कराई।
संजय सिंह ने बताया कि राजस्व दस्तावेजों में राज परिवार का नाम दर्ज है। कुलसचिव ने नामांतरण के लिए अधिग्रहण और मुआवजा देने के संबंध में जो दस्तावेज पेश किए हैं उसमें उक्त आराजी नंबर 75/1 व 75/2 की 2.77 एकड़ भूमि का कहीं उल्लेख ही नहीं है। इस प्रकार अधिग्रहण के दस्तावेज भ्रामक हैं। इतना ही नहीं जब 1953 में जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया तो 1959 में राजा यादवेंद्र दत्त दूबे द्वारा दान किए जाने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है।
जमीन में स्थित मंदिर एक ट्रस्ट के नाम है जिसे राजा जौनपुर द्वारा दान देने का अधिकार ही नहीं है। इतना ही नहीं दान देने का जो साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है उसके लिए तब विधायक रहे राजा यादवेंद्र दत्त दूबे का लेटर पैड पर लिखा पत्र दिया गया है। कोई वैधानिक दान प्रपत्र वाद में दाखिल नहीं किया गया है। इस प्रकार से जो वाद और दस्तावेज हैं वह पूरी तरह से भ्रामक हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय द्वारा 70 वर्ष बाद जमीन अपने नाम कराने की प्रक्रिया में ग्रहण लग गया है।