केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत और हिन्दी में प्रार्थना क्या हिन्दू धर्म का प्रचार है? सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प चर्चा

नई दिल्ली: केंद्रीय विद्यालयों (Kendriya Vidyalaya) में संस्कृत (Sanskrit) और हिन्दी (Hindi) में प्रार्थना क्या हिन्दू धर्म का प्रचार है? सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर याचिका पर सुनवाई तब दिलचस्प बातचीत में बदल गई जब जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि मुझे अब भी अपने स्कूल की असेंबली याद है. मैं जिस स्कूल में पढ़ती थी वहां भी सब एक साथ खड़े होकर प्रार्थना करते थे. इस पर याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में पढ़ रहे एक छात्र की मां ने अर्जी लगाई है कि अनिवार्य प्रार्थना बंद हो.
जस्टिस बनर्जी ने कहा कि लेकिन स्कूल में हम जिस नैतिक मूल्यों की शिक्षा लेते और पाठ पढ़ते हैं वो सारे जीवन भर हमारे पास हमारे साथ रहते हैं. कॉलिन ने फिर दलील दी कि ये तो सामान्य सिद्धांत और मूल्य है, लेकिन कोर्ट के सामने हमारी प्रार्थना एक खास प्रार्थना को लेकर है. ये सबके लिए समान नहीं हो सकती. सबकी उपासना की पद्धति अलग है, लेकिन उस स्कूल में असेंबली के समय सामूहिक प्रार्थना न बोलने पर दंड भी मिलता है. अब मैं जन्मजात ईसाई हूं लेकिन मेरी बेटी हिंदू धर्म का पालन करती है. मेरे घर में असतो मा सदगमय नियमित रूप से गूंजता है, लेकिन ये गहराई वाली बात है.
जस्टिस बनर्जी ने कहा, इस मामले को अगले महीने अक्टूबर में लगाते हैं. कॉलिन ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय भी अर्जी लगा रहा है. इस पर जस्टिस बनर्जी ने मामले की सुनवाई 8 अक्तूबर तक टाल दी.
सुप्रीम कोर्ट ने 28 जनवरी 2019 को केंद्रीय विद्यालय में सुबह की प्रार्थना सभा में हिंदी और संस्कृत में प्रार्थना करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका को सुनवाई के लिए बड़ी पीठ के पास भेज दिया था. याचिका पर सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने कहा था कि बड़ी पीठ अब मामले की सुनवाई करेगी. साथ ही मामला चीफ जस्टिस के सामने भी रखा जाएगा.
केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत और हिन्दी में प्रार्थना क्या हिन्दू धर्म का प्रचार है? इस पर सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने कहा था कि इस मामले को संविधान पीठ को सुनना चाहिए. पीठ ने कहा कि यह धार्मिक महत्व का मसला है और दो जजों की पीठ ने उचित बेंच के गठन के लिए मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया है.
इससे पहले केंद्रीय विद्यालयों में सुबह होने वाली प्रार्थना क्या हिंदुत्व को बढ़ावा है? सुप्रीम कोर्ट ने इसी सवाल को लेकर दायर पीआईएल पर केंद्र से जवाब तलब किया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा ये बड़ा गंभीर संवैधानिक मुद्दा है, जिस पर विचार जरूरी है.
दरअसल एक वकील ने याचिका दाखिल कर कहा है कि केंद्रीय विद्यालयों में 1964 से संस्कृत और हिंदी में सुबह की प्रार्थना हो रही है जो कि पूरी तरह असंवैधानिक है. यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ है और इसे इजाजत नहीं दी जा सकती है.
असतो म सदगमय! तमसो म ज्योतिर्गमय! मृत्योर्मामृतं गमय! ऊँ शान्तिः शांतिः शान्तिः.. अब वेद की ये ऋचाएं भी सुप्रीम कोर्ट में घसीट दी गई हैं. विवाद केंद्रीय विद्यालयों में रोज़ सुबह इन ऋचाओं को दैनिक प्रार्थना में शामिल करने को लेकर है. याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर पूछा था कि रोजाना सुबह स्कूल में होने वाली इस हिंदी और संस्कृत की प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है? इसकी जगह कोई सर्वमान्य प्रार्थना क्यों नहीं कराई जाती
सुप्रीम कोर्ट में विनायक शाह ने याचिका लगाई है, जिनके बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़े हैं. याचिका के मुताबिक देश भर में पिछले 50 सालों से 1125 केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना में ये ऋचाएं शामिल हैं. इस प्रार्थना में और भी ऋचाएं शामिल हैं जिनमें एकता और संगठित होने का संदेश है…ओम् सहनाववतु, सहनौ भुनक्तु: सहवीर्यं करवावहै तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै!..
याचिकाकर्ता की ओर से पेश देवदत्त कामत ने कहा- ये पहले से तय है कि अगर संवैधानिक मुद्दों का मामला हो तो इसे पांच जजों के संविधान पीठ को सुनना चाहिए. ये सिर्फ किसी कानून या नियम के उल्लंघन का मामला नहीं है, ये एक बेसिक सवाल को लेकर है कि क्या राज्य छात्रों के संवैधानिक अधिकार को देने में नाकाम रहा है. हम यहां यूनिफार्म कोड को चुनौती नहीं दे रहे हैं, चुनौती राज्य के हेड स्कॉर्फ को ना पहनने के निर्देश को है.
देवदत्त कामत ने कहा, इस मामले में मुख्य रूप से एक बुनियादी सवाल शामिल था कि क्या राज्य अनुच्छेद 19, 21 के तहत छात्र के लिए उचित सुविधा प्रदान करने के अपने दायित्व में विफल रहा है. बेंच ने टिप्पणी की थी कि क्या मौलिक अधिकारों के नाम पर कोई जींस पहन सकता है. यह ड्रेस के लिए नहीं कहा जा सकता. हिजाब बुर्का या जिलबाब नहीं है. यह वह मामला नहीं है. ये अलग मामला है. मौलिक अधिकारों और संस्थानों में अनुशासन के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है.
कामत ने केंद्रीय विद्यालय के लिए 2012 के सर्कुलर का जिक्र किया. जब केंद्र में छात्राओं को यूनिफार्म के रंग का स्कॉर्फ पहनने की इजाजत दी जा सकती है, तो राज्य में क्यों नहीं.
कामत ने कहा कि केन्द्रीय विद्यालय भी कुछ उचित प्रतिबंध का प्रावधान करते हैं. क्या हमारी संवैधानिक व्यस्था में एक छात्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 19, 21 और 25 के तहत अपने मौलिक अधिकारों को छोड़ दे? सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में उचित समायोजन के सिद्धांत को स्वीकार किया है. केन्द्रीय विद्यालय भी कुछ उचित प्रतिबंध का प्रावधान करते हैं. सर्कुलर का उल्लेख करते हुए कामत ने पाबंदियों का जिक्र किया.
कामत ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रगान के समय भी कोर्ट ने उन छात्रों को प्रार्थना सभा में खड़ा रहने लेकिन राष्ट्रगान गाने से छूट दी थी. जस्टिस धूलिया ने कहा, उसमें राष्ट्रगान का अपमान नहीं हुआ क्योंकि वे खड़े हो गए थे. यह मामला अलग पायदान पर है.
कामत ने कहा, केंद्रीय विद्यालयों में भी स्कॉर्फ पहनने की छूट है. हमने ये दलील कर्नाटक HC में भी रखी थी लेकिन HC ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि केंद्रीय विद्यालयों का मसला राज्य सरकार के स्कूलों से अलग है