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काशी का ज्ञानवापी प्रकरण अयोध्या मामले से भिन्न, धार्मिक स्थल का आकलन तय करेगा वस्‍तुस्थिति

सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित ज्ञानवापी मामले की सुनवाई जिस तरह वाराणसी की सिविल अदालत के बजाय जिला अदालत को सौंपी और उसे आठ हफ्ते में सुनवाई पूरी करने को कहा, उससे यही प्रतीत होता है कि वह इस मामले का जल्द निस्तारण चाहता है। वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए। चूंकि यह एक बेहद संवेदनशील प्रकरण है, इसलिए यह सभी के हित में है कि इस मामले का जितनी जल्दी संभव हो, समाधान किया जाए। नि:संदेह ऐसा न्यायपालिका की सक्रियता से ही संभव है। इस मामले में न्यायपालिका के स्तर पर वैसी देरी नहीं होनी चाहिए, जैसी अयोध्या मामले में हुई और जिसके नतीजे अच्छे नहीं रहे।

एक उपाय यह भी है कि आस्था से जुड़े इस तरह के मामले आपसी संवाद और सहमति से हल करने की कोई ईमानदार कोशिश हो। इससे सामाजिक सद्भाव को बल मिलने के साथ ही राष्ट्रीय एकता का भाव भी प्रबल होगा। अयोध्या मामले में ऐसा नहीं हो पाया था तो इसीलिए कि स्वस्थ संवाद के बजाय वाद-विवाद को ज्यादा तूल दिया गया। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अयोध्या मामले को आपसी बातचीत से हल करने में कई राजनीतिक दल बाधक बने थे। उनका स्वार्थ इसी में था कि किसी तरह इस विवाद का समाधान न होने पाए। कम से कम इस बार ऐसे राजनीतिक दलों को अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए।

यह सही है कि काशी का ज्ञानवापी प्रकरण अयोध्या मामले से भिन्न है और इसके संदर्भ में 1991 में बनाए गए धर्मस्थल कानून को भी रेखांकित किया जा रहा है, जो यह कहता है कि सभी धार्मिक स्थल उसी स्थिति में रहेंगे, जिसमें वे 15 अगस्त 1947 को थे, लेकिन इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं। यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करते हुए यह कहा कि किसी स्थल के धार्मिक चरित्र यानी उसके रूप-स्वरूप का आकलन प्रतिबंधित नहीं है। इससे यही स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी की सिविल अदालत के उस फैसले को सही पाया, जिसमें उसने ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था।

यह भी महत्वपूर्ण है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी-और वह भी तब जब उसके समक्ष धर्मस्थल कानून का संदर्भ दिया गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धर्मस्थल कानून किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के आकलन पर पाबंदी नहीं लगाता, तब फिर सवाल यह है कि यदि ज्ञानवापी परिसर अथवा इसी प्रकार के अन्य धार्मिक स्थलों का सर्वेक्षण ऐसे किसी नतीजे पर ले जाता है कि वह वैसा नहीं, जैसा दावा किया जा रहा है तो क्या उसकी अनदेखी कर दी जाएगी? वास्तव में यह वह जरूरी सवाल है जिसका जवाब सामने आना ही चाहिए।

Author

  • Mrityunjay Singh

    Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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Mrityunjay Singh is an Indian author, a Forensic expert, an Ethical hacker & Writer, and an Entrepreneur. Mrityunjay has authored for books “Complete Cyber Security eBook”, “Hacking TALK with Mrityunjay Singh” and “A Complete Ethical Hacking And Cyber Security” with several technical manuals and given countless lectures, workshops, and seminars throughout his career.

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