ऐंद्र योग में लगेगी संतति कामना की डुबकी, लोलार्क षष्ठी स्नान-व्रत पर्व दो सितंबर को, नोट कर लें समय और विधान

संतति कामना से लगने वाली पुण्य की डुबकी का योग गुरुवार की दोपहर 12.55 बजे से शुरू हो जाएगा। भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान का मान और लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन का भी विधान काशी में माना जाता है।
जागरण संवाददाता, वाराणसीः संतति कामना से भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को स्नान-दान, व्रत विधान का मान है। इसे सूर्य षष्ठी (लोलार्क षष्ठी) के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत पर्व इस बार दो सितंबर को पड़ रहा है। इस बार लोलार्क षष्ठी के साथ ऐंद्र योग का संयोग बन रहा है जो अपने आप में मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है। षष्ठी तिथि एक सितंबर को दोपहर 12.55 बजे लग रही जो दो सितंबर को दोपहर 11.26 बजे तक रहेगी।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को व्रत के साथ ही भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में स्नान-दान और भगवान लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन-पूजन का विधान है। मान्यता है कि इससे संतति की प्राप्ति होती है। वास्तव में लोलार्क भगवान भास्कर के द्वादश रूपों में प्रमुख हैं। लोलार्केश्वर महादेव की कथा महाभारत से जुड़ी है।
यह है मान्यता : कहा जाता है कि काशी में भगवान आदित्य का तेजोमयी रश्मियां पहले लोलार्क कुंड में पड़ती हैं। ऐसी लोक मान्यता है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार देखा जाए तो जन्मांग में काल पुरुष की पांचवीं राशि सिंह है। इसके स्वामी ग्रहराज सूर्य होते हैं। पंचम भाव संतान भाव की प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिए पुत्र या संतति कामना से हमारे धर्म शास्त्र में सूर्य की महिमा का बड़ा बखान किया गया है। देखा जाए तो संतान प्राप्ति के लिए जितने भी व्रत बताए गए हैं यथा ललही छठ, डाला छठ, लोलार्क षष्ठी, सूर्य षष्ठी, सबमें भगवान भास्कर की पूजा होती है। यहां तक की शास्त्रों में हरिवंश पुराण श्रवण या वाचन से भी संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में वर्णन है कि कुंड स्थित मंदिर में माता पार्वती ने शिवलिंग की पूजा की था। धारित मान्यता है कि भगवान सूर्य की पहली किरण इस स्थल पर पड़ी थी, इसे सूर्य लोल भी कहा गया। सूर्य का चक्र भी इसी कुंड में गिरा था।
भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को ही भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय भगवान का दर्शन पूजन का विधान होता है। इनका दर्शन पूजन वंदन करने से सभी तरह के कष्टों पापों के साथ ही ब्रह्म हत्या तक के पापों से मुक्ति मिल जाती है।