अधिकृत रूप से तो यह 10 मार्च को पता चलेगा कि भाजपा सरकार आएगी या अखिलेश यादव का भाग्य चमकेगा अथवा कांग्रेस व बसपा चमत्कार करेंगी, पर राजनीतिक गलियारों में तेजी से ये चर्चाएं गूंज रही हैं कि मिथकों को तोड़ रहे योगी क्या उत्तर प्रदेश की सियासत के अन्य धारणाओं को भी तोड़कर इतिहास रचने जा रहे हैं।

अधिकृत रूप से तो यह 10 मार्च को पता चलेगा कि भाजपा सरकार आएगी या अखिलेश यादव का भाग्य चमकेगा अथवा कांग्रेस व बसपा चमत्कार करेंगी, पर राजनीतिक गलियारों में तेजी से ये चर्चाएं गूंज रही हैं कि मिथकों को तोड़ रहे योगी क्या उत्तर प्रदेश की सियासत के अन्य धारणाओं को भी तोड़कर इतिहास रचने जा रहे हैं।
अंतिम चरण के मतदान के साथ ही योगी आदित्यनाथ सरकार के साथ सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं का भविष्य ईवीएम में कैद हो गया। अधिकृत रूप से तो यह 10 मार्च को पता चलेगा कि भाजपा सरकार आएगी, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का भाग्य चमकेगा या फिर कांग्रेस व बसपा चमत्कार करेंगी, पर राजनीतिक गलियारों में तेजी से ये चर्चाएं गूंज रही हैं कि मिथकों को तोड़ रहे योगी आदित्यनाथ क्या उत्तर प्रदेश की सियासत के अन्य धारणाओं को भी तोड़कर इतिहास रचने जा रहे हैं।
ये सवाल यूं ही नहीं है। अगर एग्जिट पोल के अनुमान सही होते हैं और भाजपा सत्ता में वापसी करती है, तो प्रदेश के अब तक के इतिहास में योगी ऐसे पहले मुख्यमंत्री के रूप में दर्ज हो जाएंगे जो उत्तर प्रदेश में किसी विधानसभा का निर्धारित पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर फिर अपने दल की सत्ता में वापसी कराएंगे। भाजपा नेतृत्व यदि उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है, तो वे भाजपा के ऐसे पहले नेता हो जाएंगे जो लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही प्रदेश में एक विधानसभा के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेने वाले भी पहले व्यक्ति बन जाएंगे।
दूसरी बार शपथ तो ली, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए
प्रदेश में 1951-52 के बाद से अब तक डॉ. संपूर्णानंद, चंद्रभानु गुप्त, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी ने लगातार दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ली, लेकिन इन्हें यह मौका दो अलग-अलग विधानसभाओं के लिए मिला। पं. गोविंद वल्लभ पंत को केंद्र में गृहमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने 28 दिसंबर 1954 को डॉ. संपूर्णानंद को मुख्यमंत्री नियुक्त किया। वे 1957 के चुनाव तक मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1957 में चुनाव हुए और कांग्रेस जीती। डॉ. संपूर्णानंद ने 10 अप्रैल 1957 को फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन अलग-अलग विधानसभा के लिए। पहली बार पंत जी के बाद बनाए गए और इस बार भी उन्हें पूरे पांच साल का कार्यकाल नहीं मिला। वे 6 दिसंबर 1960 तक ही मुख्यमंत्री रह पाए और कांग्रेस ने कुछ कारणों से उनकी जगह चंद्रभानु गुप्त को मुख्यमंत्री बना दिया। इस तरह डॉ. संपूर्णानंद लगातार मुख्यमंत्री रहे तो पांच वर्ष से अधिक, लेकिन अलग-अलग विधानसभाओं के लिए।
चंद्रभानु गुप्त के साथ भी इतिहास दोहराया
चंद्रभानु गुप्त के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह संपूर्णानंद के बाद 1960 में मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1962 में चुनाव हो गए। कांग्रेस को बहुमत मिला और संपूर्णानंद की तरह ही उन्होंने भी लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पर, उन्हें भी दोनों बार पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का मौका नहीं मिला। कांग्रेस ने सफलता हासिल की और उन्हें 14 मार्च 1962 को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, लेकिन पांच साल से पहले ही उनकी जगह सुचेता कृपलानी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। सुचेता कृपलानी के मुख्यमंत्रित्वकाल में ही 1967 में चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। जोड़-तोड़ से सरकार बनी और चंद्रभानु गुप्त को तीसरी बार 14 मार्च 1967 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। पर, इस बार भी गुप्त 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और चौधरी चरण सिंह के विद्रोह के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।